धन व वित्त विधेयक क्या है ? इनमें मुख्य अंतर की पूरी जानकारी

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इस पोस्ट को पूरा जरूर पढे। तो आइये आज की इस शिक्षा से संबंधित पोस्ट को शुरू करते है।

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धन विधेयक क्या होता है,धन विधेयक किसे कहते हैं ? धन विधेयक का अर्थ 


धन विधेयक - धन विधेयक वह विधेयक होता है जो अनुच्छेद 110 (1) में उल्लिखित सभी या किसी एक विषय से संबंध रखता है। धन विधेयक को इंग्लिश में Money Bill कहा जाता है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से (च) में निम्न सभी विषय और मामले आते है -

(क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन
(ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने पर ली गई या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधि का संशोधन
(ग) भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी विधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना
(घ) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग
(ङ) किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा
(च) भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा

इस प्रकार यदि कोई विधेयक संविधान के अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से (च) तक में आने वाले विषय और मामलों से संबंधित है तो उसे धन विधेयक कहा जाता है।

कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोकसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है। इस निर्णय को न्यायालय या सदन या राष्ट्रपति अस्वीकार नहीं करता है। जब राष्ट्रपति के पास विधेयक को भेजा जाता है तब उस पर लोकसभा अध्यक्ष द्वारा धन विधेयक लिखा होता है।

प्रत्येक धन विधेयक वित्त विधेयक होता है परंतु प्रत्येक वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता है।


संसद में धन विधेयक किस प्रकार से पारित किया जाता है ?


संसद में धन विधेयक किस प्रकार से लागू होता है इसे तीन चरणों में समझ सकते है।

प्रथम चरण - धन विधेयक को संसद के सदन लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है। धन विधेयक को राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है।

लोकसभा में धन विधेयक प्रस्तुत करने के बाद बहुमत मिलने पर राज्यसभा में भेज दिया जाता है।

द्वितीय चरण - राज्यसभा को धन विधेयक प्राप्त होने होने के 14 दिन के अंदर ही उस विधेयक पर विचार करके अपनी सिफारिशों के साथ या बिना सिफारिशों के लोकसभा को वापिस भेजना होता है। लोक सभा राज्य सभा की सभी या किसी भी सिफारिश को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र होती है।


यदि लोक सभा राज्य सभा की किसी सिफारिश को स्वीकार करती है तो धन विधेयक को राज्य सभा द्वारा अनुशंसित और लोक सभा द्वारा स्वीकृत संशोधनों के साथ दोनों सभाओं द्वारा पारित माना जाता है। यदि लोक सभा राज्य सभा की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक को राज्य सभा द्वारा अनुशंसित किसी संशोधन के बिना ही लोक सभा द्वारा पारित रूप में संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित माना जाता है।

यदि धन विधेयक राज्य सभा द्वारा इसकी प्राप्ति की तारीख से चौदह दिनों के भीतर लोक सभा को नहीं लौटाया जाता है तो इसे उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् लोक सभा द्वारा पारित रूप में दोनों सभाओं द्वारा पारित माना जाएगा।

तृतीय चरण - दोनों सभाओं में से पारित होने के बाद धन विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिये प्रस्तुत किया जाता है तथा वित्तमंत्री द्वारा इसे बजट में प्रस्तुत किया जाता है।

चूंकि धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमित से ही लोकसभा में पेश किया जाता है। इसलिए संसद द्वारा पारित धन विधेयक को राष्ट्रपति प्राय: अनुमित प्रदान कर देता है। राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के बाद वह धन विधेयक विधि ( कानून )  का रूप धारण कर लेता है।

वित्त विधेयक किसे कहते है ? वित्त विधेयक का अर्थ क्या होता है ?


वित्त विधेयक - वित्त विधेयक अनुच्छेद 110 में उल्लेखित किसी भी विषय के साथ - साथ अन्य विषयों से भी संबंधित होते है। वित्त विधेयक में अनुच्छेद 110 के विषयों व मामलों के अलावा आने वाले वित्तीय वर्ष में किसी नए प्रकार के कर लगाने या कर में संशोधन आदि से संबंधित विषय उपबंध भी शामिल होते हैं।

वित्तीय विधेयकों को 'क' और 'ख' श्रेणियों के वित्तीय विधेयक के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। 'क' श्रेणी के विधेयकों में अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उप-खंड (क) से (च) में विनिर्दिष्ट किसी भी मामले से संबंधित उपबंध शामिल होते हैं और 'ख' श्रेणी के विधेयकों में भारत की संचित निधि से व्यय संबंधित मामले व विषय शामिल होते है। वित्त विधेयक को इंग्लिश में Finance Bill कहा जाता है।

'क' श्रेणी के वित्तीय विधेयक को राष्ट्रपति की सिफारिश पर सिर्फ लोक सभा में पुर:स्थापित/पेश किया जाता है। एक बार लोकसभा द्वारा इसके पारित हो जाने के पश्चात् यह साधारण विधेयक के जैसा हो जाता है और ऐसे विधेयकों के संबंध में राज्य सभा की शक्तियों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। राज्यसभा चाहे तो इस विधेयक को स्वीकार भी कर सकती है और अस्वीकार भी।

'ख' श्रेणी के वित्तीय विधेयक और साधारण विधेयकों को संसद की किसी भी सभा में पुर:स्थापित/पेश किया जा सकता है।

सरल शब्दों में वित्त विधेयक,उस विधेयक को कहते हैं जो वित्तीय मामलों जैसे राजस्व या व्यय से संबंधित होते है। इसमें आगामी वित्तीय वर्ष में किसी नए प्रकार के कर लगाने या कर में संशोधन आदि से संबंधित विषय शामिल होते हैं ।

इन्हें पुनः तीन प्रकार से उप विभाजित किया जाता है -
धन विधेयक-( इसकी परिभाषा अनुच्छेद 110)
वित्त विधेयक(1)- अनुच्छेद 117 (1)
वित्त विधेयक (2)-अनुच्छेद 117( 3 )

चूंकि वित्त विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से (च) तक में आने वाले विषय और मामलों के अलावा भी अन्य विषय शामिल होते है इस कारण प्रत्येक वित्त विधेयक को धन विधेयक नहीं कहा जा सकता है।

धन विधेयक और वित्त विधेयक में क्या अंतर होता है ?


धन विधेयक के संबंध में राज्यसभा के पास अधिकार सीमित होते है। वह धन विधेयक को अस्वीकार नहीं कर सकती है। राज्यसभा केवल धन विधेयक के संबंध में अपनी सिफारिशों को रख सकती है। लोकसभा को यह अधिकार होता है की वह राज्यसभा द्वारा धन विधेयक के संबंध में रखी गयी सिफारिशों को मान भी सकती है और बिना माने ही उसे पारित भी कर सकती है।

वित्त विधेयक के मामले में राज्यसभा के अधिकार सीमित नहीं होते है। जिस प्रकार साधारण विधेयक को राज्यसभा स्वीकार या अस्वीकार करने की शक्ति रखती है ठीक उसी प्रकार वित्त विधेयक को स्वीकार करने या न करने का अधिकार राज्यसभा के पास होता है। वह चाहे तो उसमें संशोधन भी कर सकती है।

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