अमोजीत हिन्दी ब्लॉग पर आपका स्वागत है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको Rajasthan GK के टॉपिक "आबू का परमार राजवंश" के बारे में जानकारी दे रहे है। आइये इस ब्लॉग पोस्ट की शुरुवात करते है।
आबू का परमार वंश (aaboo ka parmar vansh) Parmar dynasty of Abu
परमार शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है, शत्रु को मारने वाला। शुरुवात में परमारों का शासन आबू के आस-पास के क्षेत्रों तक ही सीमित था। जैसे-जैसे प्रतिहारों का शासन कमजोर हुआ, परमारों का शासन मजबूत होता चला गया।
नोट :- आबू वर्तमान राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है। सिरोही जिले की सीमा गुजरात राज्य के साथ लगती है।
आबू के परमार वंश का संस्थापक धूमराज था। लेकिन परमार वंश की वंशावली उत्पलराज से प्रारम्भ होती है। चूंकि आबू गुजरात का पड़ोसी था इस कारण आबू के शासकों और गुजराज के शासकों में युद्ध होता ही रहता था।
गुजरात के शासक मूलराज सोलंकी ने आबू के शासक धरणीवराह को युद्ध में पराजित कर दिया था। इस कारण धरणीवराह को राष्ट्रकूट धवल की शरण लेनी पड़ी थी लेकिन कुछ समय पश्चात धरणीवराह ने आबू पर पुनः अधिकार स्थापित कर लिया था।
विक्रमदेव परमार का प्रपौत्र धारावर्ष परमार था। धारावर्ष परमार आबू का एक शक्तिशाली परमार शासक था। धारावर्ष परमार का शासन काल 1163 ईस्वी से 1219 ईस्वी तक माना जाता है।
धारावर्ष ने मोहम्म्द गौरी के विरुद्ध युद्ध में गुजराज की सेना में सेनापति की भूमिका का निर्वहन किया था। धारावर्ष परमार ने सोलंकियों की अधीनता का जुआ उतार फेंका था। इनके नाडोल के चौहानों के साथ भी अच्छे संबंध थे।
नोट :- नाडोल वर्तमान राजस्थान के पाली जिले में स्थित देसूरी तहसील के अंतर्गत आता है।
धारावर्ष परमार के पुत्र सोमसिंह परमार के शासनकाल में दो भाइयों जिनका नाम वास्तुपाल और तेजपाल मिलता है, ने आबू के देलवाड़ा गाँव में लूणवसही नामक स्थान पर नेमीनाथ जी के मंदिर का निर्माण करवाया था।
लगभग 1311 ईस्वी में नाडोल के चौहान शासक राव लूम्बा ने परमारों की राजधानी चंद्रावती पर आक्रमण करके इस पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था और आबू में चौहान शासन का प्रभुत्व स्थापित कर दिया था।
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