भरतपुर का जाट राजवंश Rajasthan GK History

अमोजीत हिन्दी ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम Rajasthan GK के इतिहास के टॉपिक "भरतपुर का जाट राजवंश" के बारे में जानकारी दे रहे है। आइये इस ब्लॉग पोस्ट की शुरुवात करते है। 

भरतपुर का जाट राजवंश (bharatpur ka jaat raajvansh) Jaat Dynasty of Bharatpur

जाट एक कृषक जाति है जिसका राजनैतिक शक्ति के रूप में उदय औरंगजेब के शासन काल में हुआ। 1669 ईस्वी में उत्तरप्रदेश के मथुरा के जाटों ने अपने नेता गोकुल के नेतृत्व में औरंगजेब का विरोध किया।

गोकुल को मार दिया गया लेकिन इसके बाद इस जाट विद्रोह का नेतृत्व राजाराम ने किया। 1688 ईस्वी में राजाराम की मृत्यु के बाद जाटों का नेतृत्व राजाराम के भतीजे चूड़ामन ने किया। 

चूड़ामन (1695 ईस्वी से 1721 ईस्वी) :- चूड़ामन भरतपुर के स्वतंत्र जाट राज्य का संस्थापक था। इन्होने मथुरा और आगरा के कई मुगल ठिकानों पर आक्रमण किया तथा मुगलों को चुनौती दी। मुगल सम्राट ने जयपुर के कछवाहा नरेश बिशन सिंह को चूड़ामन का दमन करने के लिए भेजा था लेकिन जयपुर नरेश अपने इस प्रयास में पूरी तरह सफल नहीं हो पाये। 

धीरे-धीरे चूड़ामन ने अपनी शक्ति बढ़ाई और भरतपुर के थून नामक स्थान पर किले का निर्माण करने जाट राजवंश की स्थापना की। 

बदन सिंह (1723 ईस्वी से 1756 ईस्वी) :- बदन सिंह जाट नेता चूड़ामन के उत्तराधिकारी थे। बदन सिंह को जयपुर के कछवाहा नरेश सवाई जय सिंह ने ब्रजराज की उपाधि व जागीरे भी प्रदान की थी। बदन सिंह ने भरतपुर के डीग को अपना निवास स्थान बनाया और वहाँ एक मजबूत गढ़ का निर्माण करवाया। इसके अलावा इन्होने वहाँ सुदर जलमहलों व बाग-बगीचों का निर्माण भी करवाया था। 

बदन सिंह ने डीग के अलावा भरतपुर के कुम्हेर व वैर नाम स्थानों पर भी किलों का निर्माण करवाया था। बदन सिंह एक शांति प्रिय शासक थे। इन्होने जाट-कछवाहा मैत्री संबंध स्थापित करके अपने राज्य का विस्तार किया। 1756 में डीग में इनकी मृत्यु हो गयी। 

महाराजा सूरजमल (1756 ईस्वी से 1763 ईस्वी) :- महाराजा सूरजमल, जाट शासक बदनसिंह के पुत्र थे। इन्होने भरतपुर में नवीन गढ़ की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया। महाराजा सूरजमल ने भी अपने पिता की भांति कछवाहों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने का प्रयास किया। 

सितंबर 1743 में जयपुर के कछवाहा नरेश सवाई जयसिंह की मृत्यु के बाद जयपुर की गद्दी के लिए सवाई जयसिंह के दोनों पुत्रों क्रमश: ईश्वरी सिंह व माधोसिंह के मध्य 1743 से 1750 ईस्वी तक कई बार युद्ध हुआ। महाराजा सूरजमल ने जयपुर के उत्तराधिकार के युद्ध में ईश्वरी सिंह का साथ दिया और उनकी तरफ से युद्ध में हिस्सा लिया।

1760 में महाराजा सूरजमल, अफगानी अहमदशाह अबदाली के विरुद्ध युद्ध में मराठों का साथ देने भी गए थे लेकिन मराठा सेनानायक सदाशिवराव भाऊ के व्यवहार से खिन्न होकर वापिस भरतपुर लौट आए। 

नोट :- 14 फरवरी 1761 ईस्वी को वर्तमान हरियाणा के पानीपत में मराठा सेनानायक सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में मराठा सेना और अहमदशाह अबदाली के नेतृत्व में अफगानी सेना का आपस में युद्ध हुआ। यह युद्ध इतिहास में पानीपत के तीसरे युद्ध के रूप में जाना जाता है। इस युद्ध में मराठा सेना की पराजय हुई और अफगानी सेना विजयी हुई। 

महाराजा सूरजमल ने पानीपत के युद्ध में पराजय के बाद मराठों को शरण और सहायता उपलब्ध करवाई। 1763 ईस्वी में नजीब खान के विरुद्ध रूहेलों के युद्ध में महाराजा सूरजमल वीर गति को प्राप्त हो गये। 

महाराजा सूरजमल के बारे में कालिकारंजन कानूनगो लिखते है कि "इनमें अपनी जाति के सभी गुण शक्ति, साहस, निष्ठा और चतुराई के साथ कभी भी हार न मानने वाली अदम्य भावना थी। 

नोट :- यह लेख इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर लिखा गया है। इस लेख में कई प्रकार की त्रुटियाँ संभव है। इस लेख को किसी विषय विशेषज्ञ ने प्रमाणित नहीं किया है। 

अमोजीत हिन्दी ब्लॉग व इस ब्लॉग के समस्त लेखक इस लेख में संभावित त्रुटियों के लिए जिम्मेदार नहीं है। यदि इस लेख में कोई त्रुटि है तो अमोजीत हिन्दी ब्लॉग की टीम से संपर्क करे जिससे आवश्यक सुधार किया जा सके।

🙏केवल पढ़ कर मत जाये, जानकारी अच्छी लगी है तो हमारा Facebook Page Follow करे🙏

Share This Post :-


No comments:

Post a Comment

आपको पोस्ट कैसी लगी कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखे,यदि आपका कोई सवाल है तो कमेंट करे व उत्तर पाये ।