रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी - Biography of Rani Laxmi Bai in Hindi

आपने एक कविता तो जरूर सुनी होगी जो कुछ इस प्रकार से है :-

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में,वह तलवार पुरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। 

जी हाँ,इस कविता को सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते है और वीरता की भावना प्रबल होती है। यह कविता सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता से प्रभावित होकर उनकी प्रशंसा में लिखी है। 

भारत के इतिहास में रानी लक्ष्मी बाई का गौरवमयी इतिहास शामिल है। रानी लक्ष्मी बाई को झाँसी की रानी के नाम से भी जाना जाता है। इस लेख में हम 'रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी [ Biography of Rani Laxmi Bai in Hindi ]' से जुड़ी जानकारी शेयर कर रहे है। इस लेख में रानी लक्ष्मी बाई के बारे में पूरी जानकारी हिन्दी भाषा में दी गयी है। 

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रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी - Rani Laxmi Bai Biography in Hindi 


रानी लक्ष्मी बाई की जन्म दिनांक,माता - पिता का नाम 

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका नाम 'मणिकर्णिका' रखा गया था लेकिन उन्हे प्यार से सभी 'मनु' कहते थे। उनकी माता का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था।  मोरोपंत तांबे एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में कार्यरत थे। 

बचपन में ही रानी लक्ष्मी बाई की माता का निधन हो जाने के कारण उनके पिता उन्हे अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे थे। दरबार में चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे।

रानी लक्ष्मी बाई से जुड़ी जानकारी

जन्म तिथि

19 नवम्बर 1828

जन्म स्थान

वाराणसी

मूल नाम

'मणिकर्णिका'

पिता का नाम

मोरोपंत तांबे

माता का नाम

भागीरथीबाई

पति का नाम

राजा गंगाधर राव नेवालकर

संतान

आनंद राव उर्फ दामोदर राव (दत्तक पुत्र )

मृत्यु

18 जून 1858


रानी लक्ष्मी बाई के बचपन,शिक्षा और विवाह से जुड़ी जानकारी 

रानी लक्ष्मी बाई को बचपन में ही शास्त्रों के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी देना शुरू कर दिया गया था। इस कारण वह मानसिक रूप से विद्वान होने के साथ - साथ शस्त्र चलाने और आत्मरक्षा करने में निपुण थी। 

सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम रानी लक्ष्मीबाई रखा था। इस कारण लोग उन्हे झाँसी की रानी कहकर भी संबोधित करने लगे थे।

रानी लक्ष्मी बाई का संघर्ष भरा जीवन 

सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया,लेकिन मात्र चार महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गयी। इस दौरान राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य भी कमजोर हो रहा था। उस समय राजा गंगाधार राव और रानी लक्ष्मी बाई को दत्तक पुत्र गोद लेने की सलाह दी गई थी। 

क्योंकि उस समय ब्रिटिश सरकार के द्वारा राज्य हड़प नीति शुरू की गई थी। इस नीति के तहत यदि किसी राज्य के पास राज्य का उत्तराधिकारी न हो या राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रिटिश राज्य में मिला लिया जाता था। 

इस कारण राजा गंगाधर राव और रानी लक्ष्मी बाई ने एक दत्तक पुत्र को गोद लिया जिसका नाम आनंद राव रखा गया था। इतिहास में आनंद राव को ही दामोदर राव  नेवालकर के नाम से जाना जाता है। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी।

ब्रिटिश सरकार के द्वारा राज्य हड़प नीति के तहत रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र आनंद राव उर्फ दामोदर राव के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर कर दिया था। ब्रिटिश सरकार ने आनंद राव उर्फ दामोदर राव को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करने से मना कर दिया जिसके फलस्वरूप रानी लक्ष्मी बाई को झाँसी का किला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। 

लेकिन रानी लक्ष्मी बाई ने हार नहीं मानी। उन्होने अंग्रेजों के शासन और अत्याचारों से झाँसी के राज्य को मुक्त करवाने का प्रण लिया था। 

झाँसी का युद्ध - रानी लक्ष्मी बाई की वीरता का प्रतीक - Battle of Jhansi - a symbol of valor of Rani Laxmi Bai

सन 1857 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध पूरे भारत में आक्रोश की लहर थी। उस समय पूरे भारत में क्रांतिकारियों के द्वारा ब्रिटिश सरकार का पुरजोर तरीके से विरोध किया जा रहा था। झाँसी भी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया था जहाँ हिंसा भड़क उठी थी। 

इस संग्राम में हिस्सा लेने के लिये रानी लक्ष्मीबाई ने एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। झाँसी राज्य की साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया।

झाँसी राज्य पर पड़ोसी राज्यों के भी आक्रमण किया लेकिन Rani Laxmi Bai के वीरता का परिचय देते हुये उन्हे युद्ध में हरा दिया। जनवरी 1858 में में ब्रिटिश सेना ने झाँसी को पूरी तरफ से घेर लिया था। अंग्रेज़ों का सामना करने के लिये रानी लक्ष्मी बाई ने उनसे युद्ध करने की ठानी और अपने पुत्र को पीठ के साथ बांधकर युद्ध भूमि में अपनी सेना के साथ आ खड़ी हुई। रानी के नेतृत्व में पूरी सेना ने वीरता और साहस से ब्रिटिश सेना का सामना किया। 

लगभग दो हफ्ते तक चली इस लड़ाई में ब्रिटिश सेना ने पूरी तरह शहर पर कब्जा कर लिया और वह रानी महल में प्रवेश करने में भी कामयाब हो गई थी। लेकिन झाँसी की रानी 'लक्ष्मी बाई' अपने पुत्र दामोदर राव और कुछ परिचितों के साथ अंग्रेज़ों से बच गई और झाँसी से सुरक्षित लौटकर कालपी पहुँची। 

रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु - Death of Rani Laxmi Bai

रानी लक्ष्मी बाई कालपी पहुँचकर तात्या टोपे से मिली। इसके बाद रानी लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया था। लेकिन ब्रिटिश सेना के साथ इनकी आमने-सामने की लड़ाई जारी रही। अपने अंतिम दिनों में तेज होती लड़ाई के बीच महारानी ने अपने विश्वास पात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को दामोदर राव की जिम्मेदारी सौंप दी।

18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई थी। 

रानी लक्ष्मी बाई के जीवन से मिलने वाली प्रेरणा

झाँसी की रानी के जीवन से हमें निम्न प्रेरणा मिलती है :-

जिंदगी में कभी भी हार मत मानो - रानी लक्ष्मी बाई ने अपने पुत्र और पति की मृत्यु हो जाने के बाद भी कठिन परिस्थितियों में खुद को कमजोर नहीं होने दिया। उन्होने कभी भी ब्रिटिश सरकार से हार नहीं मानी। 

जिंदगी जीनी है तो संघर्ष करना ही पड़ेगा - झांसी राज्य को अंग्रेज़ो के आक्रमण से सुरक्षित बचाने के लिये खुद अपने छोटे से पुत्र को पीठ पर बांधकर युद्ध भूमि में आ जाना इस बात का प्रतीक है कि Rani Laxmi Bai हमेशा संघर्ष करने के लिये तत्पर रहती थी। 

विकट परिस्थितियों में खुद पर विश्वास रखे - रानी लक्ष्मी बाई को हमेशा खुद पर विश्वास थी। उनके आत्मविश्वास के कारण ही एक तरफ रानी लक्ष्मी बाई खुद अपने पुत्र को पीठ पर बांधकर युद्ध भूमि में वीरता से लड़ी साथ ही उनकी वीरता देखकर झाँसी राज्य के लोगों में भी बलिदान और त्याग की भावना प्रबल हुई। 

रानी लक्ष्मी बाई को सम्मान देने के लिये सोलापुर, महाराष्ट्र में लक्ष्मीबाई की प्रतिमा,रानी लक्ष्मीबाई की समाधि और झाँसी में रानी लक्ष्मी बाई उद्यान, झांसी का निर्माण किया गया है। 

इस कारण रानी लक्ष्मी बाई जैसे आदर्श किरदारों को जिंदगी में हिस्सा बनाने की कोशिश करे। इनके जीवन से सच्चे अर्थों में जीवन जीना सीखे। रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी [ Biography of Rani Laxmi Bai in Hindi ] से जुड़ी जानकारी आपको कैसे लगी,कमेंट बॉक्स में जरूर बताये।

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Note - यह लेख इंटरनेट पर उपलब्ध सोर्स के आधार पर तैयार किया गया है। इस लेख में कई प्रकार की त्रुटियाँ होना संभावित है। इस लेख में उपलब्ध जानकारी को विषय विशेषज्ञ से प्रमाणित जरूर करवा ले। हमारे ब्लॉग के लेखक व हमारा ब्लॉग इस लेख में संभावित त्रुटियों के लिये जिम्मेदार नहीं है। 

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